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उलझन सा सफर है ज़िंदगी  बात उन दिनों की है ,जब बचपना था  सीखने की उम्र और लोगो पर भरोसा करने का सफर हुआ करता था  सीधे सच्चे रास्तो में भरोसे की एक पगडण्डी थी  हुआ था खेल खिलोनो से प्यार , कुछ लगा मन को अच्छा  तो कोई खिलौना मिला टूटा |  नासमझी और भोलेपन में टूटे खिलोने को भी अपनाया  टूटने का कोई गम नहीं , एहसास था पास होने का |  टूटा है तो क्या हुआ प्यारा तो आज भी उतना ही है |  समय के साथ खिलौना बदला , और शुरू हुआ " उलझन का सफर"  उलझन का सफर युहीं  नहीं यहाँ लोग कहते है बचपना मत करो तुम समझदार हो  ठीक है मान लिया अब हम बड़े हो गए है  भरोसा रखना सिखाया था बचपन में , पर उम्मीद तो टुटी न हमारी |  छीन लिया गया हमसे हमारा खिलौना |  हाँ माना टूटा ही सही पर प्यारा तो था  ख़ुशी तो थी |  हा माना हम बड़े हो गए है , तो क्या दिल तो आज भी वही है |  उलझन का सफर है तो क्या बचपना तो आज भी है  हम हँस रहे है तो क्या ख़ुशी तो बचपन में थी |