ख्यालों की दुनिया 


ख्यालों की दुनिया बड़ी हसीन ,
जहाँ ना उड़ान है ना बिछड़न |
न टकराव है  न ही तनाव ,
ना प्यार है और ना ही घृणा |
समझ ली तो रास्ता आसान ,
नहीं तो जिंदगी वीरान |
बचपना भी कुछ ऐसा ही था ,
जहाँ केवल परियों  की कहानियाँ
नानी का पयार तो  कही दादी का दुलार |
गुड्डे - गिड़िया का खेल ,
तो कही माँ की डाट में भी प्यार |
फिर धीरे - धीरे बड़े हो गए ,
बचपन बीता जवानी आई | 
खेल -खिलोने अब कहाँ ,
नानी का प्यार ,दादी का दुलार
अब कहाँ ?
अब बचपना करने से डरते हैं
प्यार बाटने मे झिझकते हैं
बुराई -भलाई के दाव -पेंच अच्छे से खेलते हैं |
जिम्मेदारियों के बोझ तले यु दब गए
की नानी का घर ही भूल गए |
जिम्मेदारियों के कारण अपना घर छोड़ना पड़ा
की घर की किलकारियाँ ही भूल गए |

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